एक दौर वो भी...
एक वो भी दौर था जब प्रेम पत्र दिए बिना प्यार को पूरा नहीं माना जाता था, एक चिट्ठी देने के लिए प्लानिंग की जाती थी मित्र मंडली बैठा के, सिचुएशन बनाने के लिए सामने वाले को 2-3 महीने हिंट दिया जाता था । उस ज़माने में ये काम कोई पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था, हर एक कदम दिल की सुन के आगे बढ़ाई जाती थी, दिमाग लगाने वाला कोई कांसेप्ट नहीं था क्यूंकि उस उम्र में दिल ज्यादा हावी रहता है दिमाग पे, नौवीं दसवीं के लौंडे भली भाति समझते होंगे इस चीज़ को । हर काम पूरी शिद्दत से की जाती थी, एक तरफ़ा प्यार में कुछ ज्यादा ही ताकत हुआ करती थी । इम्प्रेस करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा जाता था, हेयर जेल नया नया आया था मार्केट में, उससे भी बाल सेट नहीं हुआ तो सैलून में जाके बाल सेट कराते थे मम्मी से पैसा मांग के । और रंग बिरंगे शर्ट और जीन्स और नीचे एकदम सफेदी झलकाता हुआ कैंपस या बाटा का स्पोर्ट्स शू । हर छोटी से बड़ी कोशिशें की जाती थी मोहतरमा को इम्प्रेस करने के लिए, वो क्या है की कम्पटीशन हर फील्ड में होता है ना ।
ट्यूसन में अपनी वजनदारी भी दिखानी रहती थी, कोबरा का सेंट मार के साइकिल निकाली जाती थी । पीछा भी बकायदा किया जाता था, जब तक उनके गली मोहल्ले के एक दो चक्कर दिन में ना लगे, तब तक दिन अधूरा माना जाता था, और गलती से एकाध बार वो बालकनी या छत पे दिख जाये तो क्या ही कहने, मानो भगवान से मांगी मन्नत पूरी हो गयी हो । ये सब तब तक किया जाता था जब तक अटेंशन मिलने ना लग जाये और जहाँ अटेंशन मिला बस जन्नत वहीं से शुरू । फिर एक दिन अंदर का लेखक उभर कर आता था और जो भी चीज़ मिली उससे एक खत लिख डाली जाती थी, वो डिपेंड करता था की रेस्पॉन्स कैसा है सामने वाले का, अगर पॉजिटिव है तो मुस्कुरा मुस्कुरा के सुन्दर लिखावट बना के पूरा समय दे कर एक पन्ना मोहब्बत-ऐ-दास्तां लिखी जाती थी, अगर नेगेटिव है तो फिर कुछ लौंडे मुहब्बत कबूल करवाने के लिए कुछ भी करने से नहीं डरते थे, हाथ पे ब्लेड मार के खून से लिखी जाती थी मुहब्बत, "हाँ कर दो नहीं तो जान दे देंगे" ।
फिर हाथ में मोबाइल आया ब्लैक एंड वाइट, अरे वही नोकिआ 1100 और उसके ही जैसे और भाई बंधु, BSNL की सिम के लिए लाइन में खड़े होक आये थे हम, याद है आज भी । अब फ़ोन नंबर निकालने के लिए दिमाग लगाने का समय था, कुछ ना कुछ करने नंबर निकल भी लिया जाता था, पर उसमे भी कम मेहनत नहीं लगती थी, आज के लौंडे क्या जाने वो सब मेहनत करने का सुख । और तब तक लौंडो को अपने आप समझ में आ जाता था की कैसी बातें करनी है जिससे मैडम इम्प्रेस हो जाये, अब नयी नयी जवानी हिलोरे मारती थी, पढाई लिखाई छोड़ के बस लगे हुए सोचने में की आज का बतियाएंगे, दिल गार्डन गार्डन हो रहा होता था । कुछ कुछ लौंडे तो मिस कॉल के बहाने बतियाने लग जाते थे, मोहल्ले में खबर फ़ैल जाती थी की भाई ने मिस कॉल मार के सेटिंग कर ली । बाकी के दोस्त यार वैसे लौंडे को गुरु से कम नहीं मानते थे, "भाई का भी कुछ कर दे यार" ।
ट्यूसन में अपनी वजनदारी भी दिखानी रहती थी, कोबरा का सेंट मार के साइकिल निकाली जाती थी । पीछा भी बकायदा किया जाता था, जब तक उनके गली मोहल्ले के एक दो चक्कर दिन में ना लगे, तब तक दिन अधूरा माना जाता था, और गलती से एकाध बार वो बालकनी या छत पे दिख जाये तो क्या ही कहने, मानो भगवान से मांगी मन्नत पूरी हो गयी हो । ये सब तब तक किया जाता था जब तक अटेंशन मिलने ना लग जाये और जहाँ अटेंशन मिला बस जन्नत वहीं से शुरू । फिर एक दिन अंदर का लेखक उभर कर आता था और जो भी चीज़ मिली उससे एक खत लिख डाली जाती थी, वो डिपेंड करता था की रेस्पॉन्स कैसा है सामने वाले का, अगर पॉजिटिव है तो मुस्कुरा मुस्कुरा के सुन्दर लिखावट बना के पूरा समय दे कर एक पन्ना मोहब्बत-ऐ-दास्तां लिखी जाती थी, अगर नेगेटिव है तो फिर कुछ लौंडे मुहब्बत कबूल करवाने के लिए कुछ भी करने से नहीं डरते थे, हाथ पे ब्लेड मार के खून से लिखी जाती थी मुहब्बत, "हाँ कर दो नहीं तो जान दे देंगे" ।
फिर हाथ में मोबाइल आया ब्लैक एंड वाइट, अरे वही नोकिआ 1100 और उसके ही जैसे और भाई बंधु, BSNL की सिम के लिए लाइन में खड़े होक आये थे हम, याद है आज भी । अब फ़ोन नंबर निकालने के लिए दिमाग लगाने का समय था, कुछ ना कुछ करने नंबर निकल भी लिया जाता था, पर उसमे भी कम मेहनत नहीं लगती थी, आज के लौंडे क्या जाने वो सब मेहनत करने का सुख । और तब तक लौंडो को अपने आप समझ में आ जाता था की कैसी बातें करनी है जिससे मैडम इम्प्रेस हो जाये, अब नयी नयी जवानी हिलोरे मारती थी, पढाई लिखाई छोड़ के बस लगे हुए सोचने में की आज का बतियाएंगे, दिल गार्डन गार्डन हो रहा होता था । कुछ कुछ लौंडे तो मिस कॉल के बहाने बतियाने लग जाते थे, मोहल्ले में खबर फ़ैल जाती थी की भाई ने मिस कॉल मार के सेटिंग कर ली । बाकी के दोस्त यार वैसे लौंडे को गुरु से कम नहीं मानते थे, "भाई का भी कुछ कर दे यार" ।
अब जब बात बन गयी होती थी तो असली कहानी तो वहां से शुरू होती है, दिन दिन भर बातें ख़त्म नहीं हो रही है, रात रात भर किस्से सुनाये जा रहे है, नींद उड़ गयी है प्यार के मारे, ऊपर से सिम वालों ने हर दिन का 500 sms भी फ्री कर रखा था, "जाओ जी लो जवानी", लॉन्ग डिस्टेंस वाले भली भाति समझते होंगे । जान, जानू, शोना, बाबू, बेबी और ना जाने क्या क्या मोहब्बत भरे नाम दिए जाते थे एक दूसरे को । नाम लेने का कांसेप्ट नहीं था, एकदम शिद्दत होती थी हर चीज़ में, ऐसा कौन सा व्रत था जो नहीं रखा जाता था । कपड़े भी बता के और पूछ के पहने जाते थे । चोट इन्हे लगती थी और कराहते वो थे । खाने पीने के हिसाब से लेके पसंद नापसंद की चीज़े दिल में नोट की जाती थी । दुनिया ज़माने को भूल के बस खुद में रमे हुए हैं, और कोई या और कुछ नहीं चाहिए होता था जीवन में, हनीमून से लेके बच्चों के नाम तक सोच लिए थे जाते थे, "जान हमलोग गोवा में हनीमून मनाएंगे", "भक्क, अरे तुमको स्विट्ज़रलैंड लेके चलेंगे, फिल्म में नहीं देखती कितना सुन्दर है, पर तुमसे नहीं" । कई लोग तो बातों बातों में ही वर्ल्ड टूर कर आते थे । हर छोटी बात में सौ प्रतिशत प्यार घुसा होता था, थोड़ा भी इधर उधर नहीं। एकदम शुद्ध प्रेम, मन में बस एक ही भावना, वो शिद्दत, वो इज़हार करने का तरीका, वो सालों की गयी अनजानी मेहनत । आज के व्हाट्सप्प और फेसबुक के दौर के लोगों के समझ से परे है ।
One of your best write ups!!! Maza aa gaya! Awesome! Keep writing! :)
ReplyDeleteThanks a lot Anita :) :)
DeleteVeryyyyy nice 👍👌☺
ReplyDeleteShukriya :)
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